शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

याद आता है वो गोरखपुर...

दोस्तो, यहां गोरखपुर पर मैं वह कविता रख रहा हूं जो कई गोरखपुरी भाइयों ने आरकुट पर एक दूसरे को स्क्रैप किए हैं

याद आता है वो गोरखपुर

वो गोलघर का समां
इंदिरा बालविहार की चाट

वो अग्ग्रवाल की आइसक्रीम
उसमें थी कुछ बात

वो गणेश की मिठाई वो चौधरी का डोसा

वो जलेबी के साथ जाएके का समोसा

वो बाइक का सफर वो तारा मंडल की हवा

वो व्ही पार्क की रौनक वो उर्दू बाज़ार का समां

वो हॉल में शर्त हारने पर झगडा

वो न जाना क्लास में कभी और रहना पढाई से दूर

याद आता है वो गोरखपुर

वो जनवरी की कड़ाके की सर्दी, वो बरिश के महीने

वो गरमी के दिन, वो मस्तानी शाम .........

जय गोरखपुर ......

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