हम जरूरत से ज्यादा उत्सवधर्मी हो चले हैं। सुख हो, दुख हो हम पूरी शिद्दत से एंज्वॉय करते हैं। हम बाजार की लत लग चुकी है। हम बाजार बन चुके हैं-हमेशा गुनगुनाने वाला, हमेशा खाने वाला, हमेशा चमकने वाला, अपनी धुन में मस्त रहने वाला।
पिछले दो दशकों से विश्व स्तर पर बाजारवादी ताकतें अपने जिस एजेंडे में जुटी हैं, अब उसका असर कायदे से दिखने लगा है। मैं महानगरों की बात नहीं करता, गोरखपुर जैसे कस्बाई दिल-दिमाग वाले शहर में पिछले दस सालों में जो तेजी आई है, मैं उसी के सापेक्ष पूरे देश के कस्बाई बाजारों की कल्पना कर सकता हूं। घर में बने व्यंजन खाने और रात दस बजे तक चादर ओढ़कर सोने वाला शहर बाजार के प्रभाव में आकर बदल गया है। शहर में अब सिटी मॉल है, बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स हैं, सिनेप्लेक्स हैं और इसके साथ ही है उस आधुनिकता का बोध जो चौबीसों घंटे दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों के मुंह ताकता रहता है। यहां का युवा अब महंगे ब्रांडेड कपड़े और जूते पहनने लगा है, कॅरियर को लेकर उसकी उतनी ही बड़ी महत्वाकांक्षाएं हैं। उसके राजनितिक सरोकार भी अब उतने ही बौने हो चले हैं, जितने किसी सूटेड-बूटेड, मल्टीनेशनल में काम करने वाले के। उसे हर वक्त चाहिए तो बस चमकता बाजार, जहां वह कुछ खरीदने के लिए खड़ा हो सके।
हां, तो मैं बात कर रहा था गोरखपुर जैसे कस्बाई दिलो-दिमाग वाले शहर में बाजार के विस्तार की। यहां छोटे से छोटा फेस्टिव सीजन सोने-चांदी और गारमेंट का लगभग एक अरब का कारोबार करता है। एक दशक में दुकानों की तादाद बढ़ी और इसी के साथ शहर के युवा की सामाजिक-राजनीतिक सोच-प्रतिबद्धता घुटनों रेंगने लगी। अब शहर का युवा आंदोलित नहीं होता, विरोध नहीं करता, आवाज नहीं उठाता, बोलता नहीं--अच्छा खाता है, अच्छा सोता है, अच्छे सपने देखता है। क्यों, क्या कहेंगे आप?
रविवार, 28 नवंबर 2010
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
गोधरा से बड़ा है गोरखपुर
आप सोच रहे होंगे भला गोरखपुर और गोधरा में क्या समानता। समानता है और गजब की समानता है। एक जगह मोदी है, एक जगह योगी है। एक सांप्रदायिकता की प्रयोगशाला चलाता है, दूसरा सांप्रदायिक विचार पैदा करता है, उसे शरण देता है। पिछले दो-तीन दशकों में देश में सांप्रदायिक ताकतों को खाद-पानी देने में इन दोनों ही शहरों की खास भूमिका रही है। अब अगर सवाल करें की दोनों में नंबर वन कौन है, तो इसका जवाब ढूंढना मुश्किल नहीं होगा। गोधरा का उबाल तो महज कुछ दिनों का था, लेकिन गोरखपुर में दशकों से कुछ उबल रहा है-योगी और उनकी मंडली तो उस उबाल का एक निमित्त मात्र है। यहां मैं आपकों कुछ ऐसे तथ्यों से रूबरू कराने जा रहा हूं, जो कबीर, बुद्ध, फिराक, प्रेमचंद की कर्मभूमि का एक कड़वा सच सामने लाते हैं।
- विश्व में धार्मिक पुस्तकों का सबसे बड़ा प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर शहर में है।
- संघ के कलुषित विचारों की बाल प्रयोगशाला सरस्वती शिशु विद्या मंदिर की शुरुआत गोरखपुर से हुई।
- हिंदुत्व के नाम पर लंपट युवाओं का गिरोह हिंदू युवा वाहिनी का गठन गोरखपुर में।
- 1998 से गोरखपुर संसदीय सीट लगातार हिंदुत्व के कब्जे में।
गोरखपुर में पिछले दो दशकों से जो हो रहा है, वह यहीं ठहरा नहीं है। दशकों से इस शहर में पलती आ रही सांप्रदायिक राजनीति अभी और गहराएगी। शहर का सोचने-विचारने वाला तबका इससे भली भांति वाकिफ है, लेकिन हिंदुत्व की इस हिंसक हुंकार के आगे विरोध में मुंह खोलने की हिम्मत किसी में नहीं। वह विश्वविद्यालय में मौजूद कथित वामपंथी हों, या दूसरे सामाजिक संगठन--सभी की एक जुबान है--गोरखपुर में रहना है, तो योगी योगी कहना है।
कुछ जरूरी लिंक-
http://www.yogiadityanath.in/va2.html
http://en.wikipedia.org/wiki/Adityanath_Yogi
- विश्व में धार्मिक पुस्तकों का सबसे बड़ा प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर शहर में है।
- संघ के कलुषित विचारों की बाल प्रयोगशाला सरस्वती शिशु विद्या मंदिर की शुरुआत गोरखपुर से हुई।
- हिंदुत्व के नाम पर लंपट युवाओं का गिरोह हिंदू युवा वाहिनी का गठन गोरखपुर में।
- 1998 से गोरखपुर संसदीय सीट लगातार हिंदुत्व के कब्जे में।
गोरखपुर में पिछले दो दशकों से जो हो रहा है, वह यहीं ठहरा नहीं है। दशकों से इस शहर में पलती आ रही सांप्रदायिक राजनीति अभी और गहराएगी। शहर का सोचने-विचारने वाला तबका इससे भली भांति वाकिफ है, लेकिन हिंदुत्व की इस हिंसक हुंकार के आगे विरोध में मुंह खोलने की हिम्मत किसी में नहीं। वह विश्वविद्यालय में मौजूद कथित वामपंथी हों, या दूसरे सामाजिक संगठन--सभी की एक जुबान है--गोरखपुर में रहना है, तो योगी योगी कहना है।
कुछ जरूरी लिंक-
http://www.yogiadityanath.in/va2.html
http://en.wikipedia.org/wiki/Adityanath_Yogi
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
हां में हां मिलाने वाले कौन थे
बाबा रामदेव पिछले दिनों शहर में थे। कइयों को उनके आगमन का लंबे समय से इंतजार था, खासकर ऐसे लोग जो बुलाई गई बीमारी से पीड़ित थे। बाबा की योग पाठशाला में सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हुई। महिलाएं, लड़कियां, पुरुष, युवक-सभी उम्र के लोगों ने इसमें शिरकत की। सभी को योग की इस पाठशाला से ढेरों उम्मीदें थीं। इन्हीं मौजूद लोगों में से मैं कुछेक से उनके अनुभव जानने को लेकर मिला। मेरे संपर्क में जो लोग आए, उनके इस शिविर को लेकर अनुभव काफी कड़वे थे-इन फैक्ट वहां के इंतजामात को लेकर नहीं, बाबा की महिमा को लेकर। एक सज्जन ने बताया कि बाबा ने शिविर में मौजूद लोगों से पूछा-योग से किस-किस को क्या फायदा हुआ। इस सवाल के जवाब में बारी-बारी से कई लोग खड़े हुए। किसी ने कहा कि बाबा के बताए आसनों से उसका डायबिटीज दूर हो गया तो किसी ने कैंसर के इलाज तक की बात कह डाली। इन जवाबों पर बाबा ने हर बार एक कुटिल मुस्कान बिखेरी। इसके बाद बाबा ने वहां मौजूद भीड़ से सवाल करने शुरू किए। ताज्जुब की बात यह थी कि बाबा के सवालों पर हर बार वही चेहरे जवाब देते थे, जो तथाकथित तौर पर योग के बूते बीमारी से उबरे थे। वहां मौजूद कई लोगों ने यही महसूस किया कि बाबा के शिविर में कुछ लोग उनकी हां में हां मिलाने को बैठाए गए थे। इस शिविर में बाबा से जब उनकी उम्र पूछी गई तो उन्होंने बताने से इनकार कर दिया, लेकिन अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जरूर बताईं।
बाबा अपना सच बताओ।
बाबा अपना सच बताओ।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)