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मंगलवार, 18 अगस्त 2009

गोरखपुर की समकालीन पत्रकारिता का मुखड़ा

जब एक पत्रकार को खबर से इश्क हो जाता है तो वह न दिन देखता है, न रात। न अपनी बीट देखता है और न दूसरे की। सिर्फ अखबार देखता है। अपना अखबार। पत्रकार का इश्क जब परवान चढ़ता है तो वह इस बात की परवाह किए बगैर कि उसका अखबार उसे कितना चाहता है, वह अपने अखबार को बेइंतहा प्यार करता है। अखबार के चेहरे में अपना चेहरा देखने लगता है और अपने चेहरे में अखबार का चेहरा। इसी जज्बे के तईं कई बार कई अखबार कई खबरें पहले देने या अलग से कुछ खास देने की खुशी हासिल कर पाते हैं। यह सिर्फ व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता का ही मामला कतई नहीं बल्कि अक्सर इसके पीछे पत्रकार की अपनी निजी दिलचस्पी और कुछ बेहतर करते रहने का हौसला होता है। गोरखपुर की समकालीन हिंदी पत्रकारिता का चेहरा जिस आभा और तेज के साथ हमारे सामने है, वह निश्चित रूप से युवा पत्रकारिता का चेहरा है। पत्रकारिता की एक दूसरी परंपरा और पीढ़ी का चेहरा है। युवा पत्रकारिता के चेहरे और उसके प्रभामंडल को बनाने में जिन वरिष्ठ पत्रकारों का हाथ है, उनमें कुछ प्रमुख नाम हैं, सर्वश्री रामेंद्र सिन्हा, हर्षवर्द्धन शाही, शैलेंद्र मणि त्रिपाठी, अशोक अज्ञात, महेश अश्क, रत्नेश श्रीवास्तव, दीप्त भानु डे, पीयूष बंका, सुजीत पांडेय, गिरजेश राय, जगदीश लाल इत्यादि। यह युवा पत्रकारिता, पत्रकारिता की दूसरी परंपरा के रूप में गोरखपुर की हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में कंप्यूटरों के प्रवेश या संचार क्रांति के साथ शुरू होती है। पिछले दस-बारह सालों में गोरखपुर की समकालीन हिंदी पत्रकारिता का एक मुकम्मल चेहरा सामने आता है। जिसका अधिकांश जाहिर है कि युवा पत्रकारिता में है। यहां यह बताने में संकोच नहीं करुंगा कि वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्द्धन शाही और दीप्त भानु डे ने अपने बाद की पीढ़ी को बनाने और संवारने में जो मशक्कत की है, वह रंग ला रही है। इसी प्रसंग में हर्ष सिन्हा को याद करना युवा पत्रकारिता की उस बुनियाद को याद करना है जिसे कंप्यूटर की दुनिया कहते हैं। हर्ष शायद यहां की युवा पत्रकारिता के इकलौते पत्रकार हैं, जिनकी दिलचस्पी कंप्यूटर के रास्ते और उसकी दुनिया में सबसे ज्यादा है। युवा पत्रकारिता में जो नाम बिल्कुल नए हैं और ध्यान खींचते हैं या पसंद किए जाने योग्य हैं या जिनसे आगे उम्मीद की जा सकती है वे हैं-शफी आजमी, शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव, शैलेश अस्थाना, रोहित पांडेय, मनोज सिंह, विजय कुमार उपाध्याय, बीनू मिश्र, धीरज कुमार, अभिजीत शुक्ल, अरविंद राय, प्रदीप श्रीवास्तव, नवीन पांडेय, पुरुषोत्तम राय इत्यादि। बिल्कुल नए पत्रकारों को जिन हाथों और हुनरमंदों से कुछ महत्वपूर्ण लेना और आकार ग्रहण करना है निश्चित रूप से उन बड़ों में महेश अश्क, अशोक अज्ञात, रामेंद्र सिन्हा, हर्षवर्द्धन शाही, दीप्त भानु डे, शैलेंद्र मणि त्रिपाठी, गिरिजेश राय, जगदीश लाल, पीयूष बंका, राजेश सिंह बसर, अरुण गोरखपुरी, मनोज त्रिपाठी, एसपी सिंह, जयशंकर मिश्र शामिल हैं। हिंदी ही नहीं अंग्रेजी पत्रकारिता से जुड़े डाॅ एसपी त्रिपाठी, राजेश सिंह, काजी अब्दुर्रहमान जैसे नामी भी इस दृष्टि से उपयुक्त और महत्वपूर्ण हैं। आज की युवा पत्रकारिता में सब कुछ अच्छा, मीठा और महत्वपूर्ण नहीं है। कुछ कम अच्छा भी है। कभी इसी शहर की पत्रकारिता में यह खूबी और दायित्वबोध भी था कि किसी घटना या किसी का अवसान या अवसर विशेश पर संबंधित विशेशज्ञों और व्यक्तियों से फोन कर प्रतिक्रिया ली जाती थी। अब यह कम होता जा रहा है। ..........अगर ब.व.कारंत का निधन होता है और उस पर श्रीमती गिरीश रस्तोगी और दूसरे महत्वपूर्ण रंगकर्मियों की प्रतिक्रिया लेकर एक दो काॅलम का भी समाचार नहीं दिया जाता है तो यह युवा पत्रकारिता के क्षितिज को छोटा करता है। बहरहाल, गोरखपुर की समकालीन पत्रकारिता का पाट राप्ती के पाट से चैड़ा है, जिसमें राप्ती के जल से कहीं अधिक स्वच्छ, पेय और मीठा जल है, जिसकी गति में समय की तीव्रता के साथ उसके धड़कन की कल-कल की गूंज अपनी ताकत के साथ मौजूद है।

साभार:-गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब की पत्रिका ‘सरोकार’, संपादक-जगदीश लाल, वर्ष 2002 में प्रकाशित डा गणेश शंकर पांडेय, कवि एवं उपाचार्य हिंदी विभाग, दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के लेख का संपादित अंश
पुनश्च- वर्ष 2002 के इस लेख से गोरखपुर की पत्रकारिता जगत के कई महत्वपूर्ण नाम लेख से कुछ अप्रासंगिक अंशों को हटाए जाने से छूट गए हैं, इसके लिए खेद है।